27 Jan 2017

आप भी जरूर जानिए कि क्यों नहीं है -: केतु का सिर और राहु का धड़ :-

आप भी जरूर जानिए कि क्यों नहीं है -: केतु  का सिर और राहु का धड़ :-


क्या आप जानते है कि राहु और केतु के एक ही शरीर के दो हिस्से क्यों है अगर नहीं जानते तो पड़ते रहिये है हमारी यह पोस्ट और जानिए पूरी सच्ची कहानी -

तो आइये जानते है इसका सच क्या है ?

राहु-केतु ग्रह का असली जनक सर्वभानु नाम का एक दैत्य है। और इस दैत्य के शरीर से देवताओ को अमृत वितरण के समय राहु और केतु ग्रह का जन्म हुआ था। स्कन्द पुराण के अवन्ति भाग के अनुसार राहु-केतु का जन्म स्थान उज्जैन भूमि को मन जाता है। सूर्य और चन्द्रमा को ग्रहण का श्रप देने वाले ये दोनों राहु-केतु ग्रह उज्जैन की धरती पर ही पैदा हुए थे।

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जैसा कि आपको बताया है कि अवन्ति भाग की कथा के अनुसार समुन्दर-मंथन से निकले हुए अमृत का बटवारा महाकाल वन में हुआ था ।  भगवन विष्णु ने स्वमं यही पर मोहिनी रूप धारण कर देवताओ को अमृत जल का पान करवाया था। तब भगवान विष्णु को दैत्य के छल से अमृत पिने की बात पता चल गई तो विष्णु भगवान् ने सर्वभानु दैत्य का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया था। और अमृत पी लेने के कारन उस दैत्य का सिर और धड़ जीवित रह गए जो की आज राहु और केतु के नाम से जाने जाते है।

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भारतीय ज्योतिष विद्या के अनुसार राहु और केतु को छाया ग्रह भी मन जाता है। ये दोनों ग्रह सर्वभानु नाम के दैत्य के शरीर से ही उत्पन हुए थे। राक्षक के सिर वाला भाग 'राहु" और धड़ वाला भाग "केतु" कहलाता है। यदि किसी इन्सान की कुंडली में राहु केतु गलत स्थान पर विराजमान हो तो उस इन्सान के जीवन में भूचाल सा ला देता है। क्योकि राहु-केतु इतने भयानक और पॉवरफुल होते है कि सूर्य और चंद्र पर ग्रह भी इन्ही के कारण लगता है।

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 =>  राहु-केतु की रियल स्टोरी जरूर पढ़े :-

जब अमृत जल का पान विष्णु देव मोहिनी का रूप धारण करके देवताओ को पिला रहे थे तो दैत्यों की पंग्ति में सर्वभानु नाम का एक दैत्य भी बैठा था। सर्वभानु को आभाष हुआ की भगवान् ने मोहिनी रूप धारण करके सभी दैत्यों को छल दे रहे है। तभी उस दैत्य ने देवता का रूप धारण करके चुपके से सूर्य और चंद्र के बिच में बैठ गया और जैसे ही उसको अमृत का पान करवाया गया तभी सूर्य और चंद्र ने उसको पहचान लिया और विष्णु देव से कहा की ये तो सर्वभानु दैत्य है भगवन आपने इसको अमृतपान करवा दिया अब तो यह अमर हो गया है तभी विष्णु देव ने इसका सलूशन निकल और अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया लेकिन उसका उसका मुख अमृत को चख लिया था जिसके कारण उसका सिर अमर हो गया था।

फिर ब्रम्हा देव जी ने उसके सिर को एक शर्प के शरीर से जोड़ दिया था और ऐसे ही हम राहु के नाम से जानते है। और उसके धड़ को शर्प के सिर से जोड़ दिया जैसे हम केतु के नाम से जानते है। और इन्ही के बिच राहु केतु की दुश्मनी सूर्य और चंद्र के साथ हो गई जिसे सूर्य और चंद्रमा आज भी झेल रहे है। राहु और केतु की दुश्मनी के कारन ही सूर्य और चंद्र को ग्रहण लगता है, इसी कारन इस पुरे ब्रम्हांड में राहु केतु से सब डरते है।

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अभी हमारे अस्त्रोलोगेर गुरूजी व्यस्त है।
आशा है की गुरूजी जल्द ही आपकी सेवा में हाजिर होंगे।
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